Ravish Kumar को जान से मारने वाले ki Dhamki Par अभिशर शर्मा का मुंह तोड़ जवाब
पुण्य प्रसून वाजपेयी ने हाल ही में कहा है कि ख़बरों को चलाने और गिराने के लिए पीएमओ से फोन आते हैं। कोबरा पोस्ट के स्टिंग में आपने देखा ही कैसे पैसे लेकर हिन्दू मुस्लिम किए जाते हैं। इस सिस्टम के मुकाबले आप दर्शकों ने जाने अनजाने में ही एक न्यूज़ रूम विकसित कर दिया है जिसे मैं पब्लिक न्यूज़ रूम कहता हूं। बस इसे ट्रोल और ट्रेंड की मानसिकता से बचाए रखिएगा ताकि खबरों को जगह मिले न कि एक ही ख़बर भीड़ बन जाए…
Ravish Kumar : न्यूज़ चैनल निर्लज्ज तो थे ही अब अय्याशियां भी करने लगे हैं। इस अय्याशी का सबसे बड़ा उदाहरण है अभी बारह महीने बाद होने वाले चुनाव में कौन जीतेगा। ताकि दिल्ली के आलसी पत्रकारों और एंकरों और बंदर और लोफर प्रवक्ताओं की दुकान चल सके। आम आदमी सड़कों पर मरता रहे।
पब्लिक ही मेरा संपादक है और मैं पब्लिक न्यूज़ रूम में काम करता हूं। हमारा चैनल अब कई शहरों में नहीं आता है। इससे काम करने के उत्साह पर भी असर पड़ता है। शहर का शहर नहीं देख पा रहा है, सुनकर उदासी तो होती है। इससे ज्यादा उदासी होती है कि संसाधन की कमी के कारण आपके द्वारा भेजी गई हर समस्या को रिपोर्ट नहीं कर पाते। कई लोग नाराज़ भी हो जाते हैं। कोई बेगुसराय से चला आता है तो कोई मुंबई से ख़बरों को लेकर चला आता है। उन्हें लौटाते हुए अच्छा नहीं लगता। आपमें से बहुतों को लगता है कि हर जगह हमारे संवाददाता हैं। सातों दिन, चौबीसों घंटे हैं। ऐसा नहीं है। दिल्ली में ही कम पड़ जाते हैं। जिन चैनलों के पास भरपूर संसाधन हैं उन्हें आपसे मतलब नहीं है। आप एक एंकर का नाम बता दें तो सुबह चार घंटे लगाकर सैंकड़ों लोगों के मेसेज पढ़ता है। इसलिए धीरज रखें। मेरा सवाल सिस्टम से है और मांग है कि सबके लिए बेहतर सिस्टम हो। आपमें से किसी की समस्या को नहीं दिखा सका तो तो आप मुझे ज़रूर उलहाना दें मगर बात समझिए कि जो दिखाया है उसी में आपका सवाल भी है।
आपके मेसेज ने पत्रकारिता का एक नया मॉडल बना दिया है। उसके लिए मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं और प्रणाम करना चाहता हूं। स्कूल सीरीज़, बैंक सीरीज़, नौकरी सीरीज़, आंदोलन सीरीज़ ये सब आप लोगों की बदौलत संभव हुआ है। दो तीन जुनूनी संवाददाताओं का साथ मिला है मगर इसका सारा श्रेय आप पब्लिक को जाता है।दुनिया का कोई न्यूज़ रूम इतनी सारी सूचनाएं एक दिन या एक हफ्ते में जमा नहीं कर सकता था। महिला बैंकरों ने अपनी सारी व्यथा बताकर मुझे बदल दिया है। वो सब मेरी दोस्त जैसी हैं अब। आप सभी का बहुत शुक्रिया। हर दिन मेरे फोन पर आने वाले सैंकड़ों मेसेज से एक पब्लिक न्यूज़ रूम बन जाता है। मैं आपके बीच खड़ा रहता हूं और आप एक क़ाबिल संवाददाताओं की तरह अपनी ख़बरों की दावेदारी कर रहे होते हैं। मुझे आप पर गर्व है। आपसे प्यार हो गया है। कल एक बुजुर्ग अपनी कार से गए और हमारे लिए तस्वीर लेकर आए। हमारे पास संवाददाता नहीं था कि उसे भेजकर तस्वीर मंगा सकूं।
जब मीडिया हाउस खत्म कर दिए जाएंगे या जो पैसे से लबालब हैं अपने भीतर ख़बरों के संग्रह की व्यवस्था ख़त्म कर देंगे तब क्या होगा। इसका जवाब तो आप दर्शकों ने दिया है। आपका दर्जा मेरे फ़ैन से कहीं ज़्यादा ऊंचा है। आप ही मेरे संपादक हैं। कई बार मैं झुंझला जाता हूं। बहुत सारे फोन काल उठाते उठाते, उसके लिए माफी चाहता हूं। आगे भी झुंझलाता रहूंगा मगर आप आगे भी माफ करते रहिएगा। यही व्यवस्था पहले मीडिया हाउस के न्यूज़ रूम में होती थी। लोगों के संपर्क संवाददाताओं से होते थे। मगर अब संवाददाता हटा दिए गए हैं। स्ट्रिंगर से भी स्टोरी नहीं ली जाती है। जब यह सब होता था तो न्यूज़ रूम ख़बरों से गुलज़ार होता था। अब इन सबको हटा कर स्टार एंकर लाया गया है।
आपसे एक गुज़ारिश है। आप किसी एंकर को स्टार होने का अहसास न कराएं। मुझे भी नहीं। ये एंकर अब जन विरोधी गुंडे हैं। एक दिन जब आपके भीतर का सियासी और धार्मिक उन्माद थमेगा तब मेरी हर बात याद आएगी। ये एंकर अब हर दिन सत्ता के इशारे पर चलने वाले न्यूज रूम में हाज़िर होते हैं। पुण्य प्रसून वाजपेयी ने हाल ही में कहा है कि ख़बरों को चलाने और गिराने के लिए पीएमओ से फोन आते हैं। कोबरा पोस्ट के स्टिंग में आपने देखा ही कैसे पैसे लेकर हिन्दू मुस्लिम किए जाते हैं। इस सिस्टम के मुकाबले आप दर्शकों ने जाने अनजाने में ही एक न्यूज़ रूम विकसित कर दिया है जिसे मैं पब्लिक न्यूज़ रूम कहता हूं। बस इसे ट्रोल और ट्रेंड की मानसिकता से बचाए रखिएगा ताकि खबरों को जगह मिले न कि एक ही ख़बर भीड़ बन जाए।
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मैंने सोचा है कि अब से आपकी सूचनाओं की सूची बना कर फेसबुक पर डाल दूंगा ताकि ख़बरों को न कर पाने का अपराधबोध कुछ कम हो सके। यहां से भी लाखों लोगों के बीच पहुंचा जा सकता है। कभी आकर आप मेरी दिनचर्या देख लें। एक न्यूज़रूम की तरह अकेला दिन रात जागकर काम करता रहता हूं। कोई बंदा ताकतवर नहीं होता है। जो ताकतवर हो जाता है वो किसी की परवाह नहीं करता। मैं नहीं हूं इसलिए छोटी छोटी बातों का असर होता है। आज कल इस लोकप्रियता को नोचने के लिए एक नई जमात पैदा हो गई है जो मेरा कुर्ता फाड़े रहती है। यहां भाषण वहां भाषण कराने वाली जमात। एक दिन इससे भी मुक्ति पा लूंगा। शनिवार रविवार आता नहीं कि याद आ जाता है कि कहीं भाषण देने जाना है। उसके लिए अलग से तैयारी करता हूं जिसके कारण पारिवारिक जीवन पूरा समाप्त हो चुका है। जल्दी ही आप ऐसे भाषणों को लेकर आप एक अंतिम ना सुनेंगे। अगर आप मेरे मित्र हैं तो प्लीज़ मुझे न बुलाएं। कोई अहसान किया है तब भी न बुलाएं। मैं अब अपनी आवाज़ सुनूंगा साफ साफ मना कर दूंगा। अकेला आदमी इतना बोझ नहीं उठा सकता है। गर्दन में दर्द है। कमर की हालत खराब है। चार घंटे से ज्यादा सो नहीं पाता।
आप सब मुझे बहुत प्यार करते हैं, थोड़ा कम किया कीजिए, व्हाट्स अप के मेसेज डिलिट करते करते कहीं अस्पताल में भर्ती न हो जाऊं। इसलिए सिर्फ ज़रूरी ख़बरें भेजा करें। बहुत सोच समझ कर भेजिए। मुझे जीवन में बहुत बधाइयां मिली हैं, अब रहने दीजिए। मन भर गया है। कोई पुरस्कार मिलता है तो प्राण सूख जाता है कि अब हज़ारों बधाइयों का जवाब कौन देगा, डिलिट कौन करेगा। मुझे अकेला छोड़ दीजिए। अकेला रहना अच्छा लगता है। अकेला भिड़ जाना उससे भी अच्छा लगता है। गुडमार्निग मेसेज भेजने वालों को शर्तियां ब्लाक करता हूं। बहुतों को ब्लाक किया हूं। जब नौकरी नहीं रहेगी तब चेक भेजा कीजिएगा! तो हाज़िर है पब्लिक न्यूज़ रूम में आई ख़बरों की पहली सूची।
उत्तर प्रदेश में बेसिक टीचर ट्रेनिंग कोर्स एक पाठ्यक्रम है। प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी पाने के लिए यह कोर्स करना होता है। प्राइवेट कालेज में एक सेमेस्टर की फीस है 39,000 रुपए। राज्य सरकार हर सेमेस्टर में 42,000 रुपये भेजती है। मगर इस बार छात्रों के खाते में 1800 रुपये ही आए हैं। छात्रों का कहना है कि अगले सेमेस्टर में एडमिशन के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। आगरा के एम डी कालेज के छात्र ने अपनी परेशानी भेजी है। उनका कहना है कि प्राइवेट और सरकारी कालेज के छात्रों के साथ भी यही हुआ है।
छात्र ने बताया कि बेसिक टीचर ट्रेनिंग का नाम सत्र 2018 से बदलकर डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन कर दिया है। इसमें राज्यभर में 2 लाख छात्र होंगे। अब जब 2 लाख छात्र अपने साथ होने वाली नाइंसाफी से नहीं लड़ सकते तो मैं अकेला क्या कर सकता हूं। इन्होंने कहा है कि मैं कुछ करूं तो मैं लिखने के अलावा क्या कर सकता हूं। सो यहां लिख रहा हूं।
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