दिसंबर,2015 में जब जापानी प्रधानमंत्री ‘शिंजो आबे’ तीन-दिवसीय यात्रा पर ‘भारत’ आये थे, तब हमारे प्रधानसेवक जी ने अपना संघीधर्म निभाते हुए ‘आबे’ का स्वागत वाराणसी स्थित पंडितालयों में पंडितों के पाण्डित्यपूर्ण प्रदर्शन से करवाया!
दरअसल हमारे संघसेवक प्रधानजी #वाराणसी को भी जापान का #क्योतो बनाने के अलावा बुलेट-ट्रेन की माँग कर अपना पाण्डित्य व धनकुबेरों का सेवकधर्म निभाना चाहते थे।
अतः सेवकजी ने वहाँ खास तरह की कर्मकांडी तैयारियाँ करवाई। जिसके तहत घाट पर #दसाश्वमेध_यज्ञ का आयोजन करवाया गया।
मगर समय के पाबन्द जापानी ‘आबे’ उस 3.30 (साढे़ तीन घंटों) से भी अधिक के ऊबाऊ-कर्मकाण्डों से इतने तमतमा गये कि उन्होंने तैश में आकर अपने मन की भड़ांस हमारे प्रधानजी के सामने निकाल ही दी।
हालाँकि यह बात भारतीय मिडिया ने जनता से छिपाई मगर कुछ साप्ताहिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं से सच सामने आ ही गया!
मंच पर बैठते ही ‘शिंजो आबे’ ने हमारे प्रधानजी से कहा कि “मुझे नहीं लगता है कि आपके देश को ‘बुलेट-ट्रेन’ की जरूरत है!
आगे उन्होंने कहा की, “बुलेट-ट्रेन’ की जरूरत आखिर उस राष्ट्र को कैसे व क्यों हो सकती है, जिस राष्ट्र के एक बडे़ हिस्से की जनता तो रोजगार के अभाव में बेकार बैठी है! जबकि दूसरी और देश का प्रधान नेता भी अपने अनगिनत मंत्रियों के साथ मिलकर 3½ घन्टों तक के बेमतलब के कार्यों को तत्परता से करवाने में कीमती समय बर्बाद कर देते है?”
[कुल मिलाकर आबे का मतलब था की इस देश के #भक्तों को बुलेट-ट्रेन की अपेक्षा ‘घन्टों’ की जरुरत ज्यादा हैं, जो कई-कई घन्टों तक बैठकर #घन्टे बजाते रहेंगें!]
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